जग जीतने का मतलब

                                                     
           एक गांँव में राहुल नाम का लड़का रहता था। उसके पिताजी एक मामूली मजदूर थे। एक दिन राहुल के पिताजी उसको अपने साथ शहर ले गए। उनको एक मैदान साफ करने का काम मिला था। जिसमे एक दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन होना था। राहुल मैदान देखकर बहुत खुश हुआ।उस दिन उसे भी दौड़ने का शौक चढ़ गया। जब यह दोनों गाँव लौटे, तो राहुल ने अपने पिता से जिद की कि हमारे गाँव में भी दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन होना चाहिए। राहुल के पिता ने गाँव के प्रधान के सामने यह सुझाव रखा। 
            कुछ ही दिनों में प्रतियोगिता की तैयारी शुरू हो गई और आसपास के सभी गाँव के बहुत सारे बच्चे दौड़ में हिससा लेने के लिए आ गए। राहुल के दादा जी सब शान्ति से देख रहे थे हालांकि प्रतियोगिता बहुत कठिन थी। लेकिन राहुल ने ठान रखा था कि उसे जितना ही है। सीटी बजते ही सारे प्रतिभागी रेस लाइन कि तरफ दौड़ने लगे। कड़क धूप और पथरीले रास्ते को पार करते हुए राहुल ने रेस जीत ली। पूरा मैदान तालियों से गूंज उठा। राहुल की एक के बाद एक जीत का सिलसिला शुरू हो गया।
            राहुल के दादा जी मन ही मन यह देखकर बहुत दुखी होते थे। एक दिन दादा जी ने राहुल के लिए एक खास दौड़ का आयोजन किया। दौड़ के नाम पर राहुल खुशी-खुशी मैदान में आया। 
             आसपास के सभी गाँव के लोग दौड़ प्रतियोगिता देखने आए थे। राहुल ने देखा कि इस प्रतियोगिता में उसके अलावा केवल दो ही प्रतिभागी थे। हमेशा की तरह सिटी बजते ही राहुल रेस लाइन कि तरफ दौड़ा। वह लाइन तक पहुंचने ही वाला था कि उसने देखा कि बाकि के दोनों प्रतियोगियों ने अभी तक दौड़ना ही शुरू नहीं किया है।
            राहुल ने देखा कि एक प्रतिभागी लंगड़ा और दूसरा प्रतिभागी अंधा है। मैदान में चुप्पी छाई हुई थी। मोहन अपनी जगह पर वापस गया और दोनों प्रतिभागियों का हाथ पकड़कर, धीरे - धीरे उन्हे रेस लाइन तक साथ में लेकर आया। तीनों प्रतिभागियों ने एक साथ रेस लाइन को पार किया। यह देखकर पूरा मैदान तालियों की गूंज में भर उठा। 
            मोहन के दादा जी बोले, आज मुझे यकीन हो गया है कि तुम असली विजेता हो।
सबक :- जीवन की हर रेस में जीतना ही जरूरी नहीं होता है।